Friday, 2 September 2016

बड़े घर की वो

वो अन्धेरे में रहती है क्योंकि
दिन के उजाले की किसी किरण को
अंदर जाने की आज़ादी नहीं और 
वो एक लम्बी काली रात में
ख़यालों की दुनिया में कई पहाड़ों से गिरती है
दर्द के दरिया में तैरती है और थक कर सो जाती है।
अब उसकी दुनिया में सूरज उगता ही नहीं
गहरे भारी परदों से ढकी खिड़कियाँ
बरसों से खुली ही नहीं।
वो बहुत देर तक सोती है पर थकी ही हुई जागती है
उसकी आवाज़ जम सी गयी है
उसका हलक सूख गया है
अब वो अपने आप से भी बात नहीं कर पाती।
बड़े घर की वो बड़ी बेटी
छोटे से कमरे में क़ैद है।।।।।
..... मृदुल 
Based on the true life of an unfortunate daughter who was gang raped in her school but her well known family hushed the matter and now she has lost her mental balance. The real name and identity is protected on ethical grounds. 

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