Friday 2 September 2016

किताब की तरह

कब तक खुली रहूँ मैं किताब की तरह
कब तक तुम मुझे पढ़ने का नाटक करते रहो 
शायद मैं तुम्हारा मजमून ही नहीं
इतिहास नहीं वर्तमान भी नहीं
मेरे वर्क रंगीन और चमकदार नहीं
मैं तड़क भड़क उतेजक कहानियों से भरी नहीं
इस लिए मैं तुम्हारी आवारगी का सामान नहीं
कोई बात नहीं.....
अभी तुम अपने सस्ते रिसालों से दिल बहलाओ
क्योंकि मुझे पढ़ पाने का हुनर अभी तुम में नहीं
खैर जब कभी वो वक़्त आये तो आना
तब किताबों की अलमारी में से सबसे ऊपर
मुझे उठा लेना हाथ बढ़ा कर 

मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी।।।

.... मृदुल

I met this young lady who had so much pain to share about her mother. Why do women take so much pain endlessly? 

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