Friday, 8 February 2013

बेटी

ट्रेन के कम्पार्टमेन्ट में,
पुराने कपडों में लिपटी,
नई जन्मी एक नन्ही सी जान,
बिना नाम, बिना पहचान,
मैंने ही छोडी थी।

कन्खियों से एक भली अौरत को उसे उठाते हुये देखा था,
उसकी भोली सूरत पर प्यार अौर तरस खाते हुये देखा था।

बेदर्द, बेरहम, बेशर्म है वो माँ,
जो इस नन्ही सी जान को छोड गई, एक आवाज आई,
कैसे इस मासूम को जन्म देकर छोड गई? एक अौरत चिल्लाई।

इन शब्दों की गूंज से मैं बहुत दूर चली आई हूँ,
पर उस दृश्य उस पल को भूल नहीं पाई हूँ।

आसान नहीं होता ममता की डोर तोडना,
दर्दनाक होता है जिन्दगी से रिश्ता तोडना।

बेदर्दी अौर बेरहमी से तो मैंने उसे बचाया है,
तीन बेटियों के बाद जिसे पाया है,
वो तीन जो जिंदा भी नहीं,
जिन्हे बाप ने जिन्दा दफनाया है।

दुआ है उसे जिन्दगी मिल तो जाए,
किसी अौर के आँगन में ही सही... खिल तो जाए।

-मृदुल

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