दिलवालों की दिल्ली ने दहला दिया,
एक मासूम को दामिनी कहला दिया।
हर तरफ उसी की बात होती है,
कुछ रोज से भयानक हर रात होती है।
अकेले बाहर जाने से डर सा लगने लगा है,
हर कोई शैतान का सर सा लगने लगा है।
नन्हे बच्चों की बातों से खौफ झलकता है,
हर तरफ मासूमियत का खून छलकता है।
नन्ही नन्ही बच्चियां भी जानने लगी हैं,
आधा अधूरा सच पहचानने लगी हैं।
बाप, भाई, दादा के रिश्ते बेगाने हो गये हैं,
बच्चे बचपन से पहले सयाने हो गये हैं।
स्कूलों मे इसके चर्चे खुले आम हो गये हैं,
रेप जैसे घिनौने शब्द सरे आम हो गये हैं।
दिल्ली के दरिंदों को शायद फांसी भी हो जायेगी,
पर क्या यह सजा भी काफी हो जायेगी?
अभी भी हर रोज एक खबर आ ही जाती है,
कहीं कोई अनामिका या दामिनी रौंदी जाती है।
सिर्फ मोमबत्तियां जलाने से कम ना अंधेरा होगा,
जब जागेंगे सब, तब ही तो सवेरा होगा।
मोम तो यूँ भी पिघल ही जाता है,
पर क्या दिल पिघल पायेंगे?
सियासतों के शोर में,
क्या हम सिसकियों को सुन पायेंगे?
-मृदुल
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